इश्क़बाज
जिस तरफ़ देखता हूँ बस तमाशा देखता हूँ
इश्क़ भी और तकरार भी बेतहाशा देखता हूँ ।
जख्मों के बस अब कुछ निशां ही रह गए है
पर अभी भी उस पे गंभीर निराशा देखता हूँ ।
झूठ की ही अब हो गई है नई सल्तनत
सच्चाई को छुपाये घना कुहासा देखता हूँ ।
खामोशियों पे मानो शामत सी आ गई है
विरोध का भी विरोध बेतहाशा देखता हूँ ।
आसां हो गया है ख़र्च करना एक जिंदगी
हर भाषा की एक नई परिभाषा देखता हूँ ।
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@dr.sandeep_singh
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