ज़िंदगी
हमने कुछ इस कदर अपनी जिंदगी बितायी है
लगाकर खुद को आग खुद ही बुझायी है।
जेल में मुझसे मिलने तक कोई नही आता
लगता है मेरी अब पूरे शहर से लड़ायी है।
ये काली सलाखें मुझे आज चुभ रही है
आज फिर मुझे मेरी माँ की याद आयी है।
एक शक्श था जो मेरे दिल के करीब था
मगर मेरे दिल में रहती बस अब तन्हायी है।
जेल का चौकीदार मेरे बताते बताते रो पड़ा
सुन कोर्ट ने तुझे फाँसी की सजा सुनायी है।
.⭕⭕⭕⭕.
@dr.sandeep_singh
Comments
Post a Comment